शर्म करो सरकार ! उत्तराखंड ने मांगा न्याय तुमने दिया मुकदमा, मोहित डिमरी समेत 13 जुनूनी बने निशाना
देहरादून। गजब है सरकार तुम्हारी तानाशाही। तुम जब चाहे जिसे चाहो अपराधी बना दो। लेकिन असल अपराधी को बचा जाओगे, ये यकीन है। मालूम है तुम्हें अपने खिलाफ उठती आवाजें पसंद नहीं, इसीलिए हर बार आवाज कुचलने के लिए पुलिस को आगे करते हो।
लेकिन तय मान लो तुम जितना परेशान करोगे, देवभूमि के ये मतवाले और बुलंद होंगे। गजब मजाक बनाकर रखा है तुमने सरकार लोकतंत्र का इस देवभूमि में…मतलब अब पहाड़ के लोग अपनी देवभूमि की अस्मिता और अस्तित्व को बचाने की शांतिपूर्ण लड़ाई भी न लड़ें? जो अगर लड़ें तो तुम उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए मुकदमे लिखवा दो।
देहरादून के रवि बडोला को न्याय दिलाने के साथ ही उत्तराखंड में गुंडे-बदमाशों के बढ़ते आतंक के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करने वाले आंदोलनकारियों के खिलाफ मुक़दमे दर्ज किए गए हैं।
पुलिस ने मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी सहित अन्य प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ आईपीसी की धारा 147 (दंगा करना) और 341 (गलत तरीके से रोकना) के मामले में मुकदमा पंजीकृत किया है।
बताते चलें कि मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति ने बीते 20 जून को रवि बडोला को न्याय दिलाने और बढ़ रही आपराधिक घटनाओं को लेकर 6 नंबर पुलिया पर प्रदर्शन किया था।
इस मामले में पुलिस ने समिति के संयोजक मोहित डिमरी सहित 13 लोगों को गिरफ्तार किया था। इन सभी को देर रात जमानत पर रिहा किया गया। वहीं इसके बाद रायपुर थाने में इन सभी के खिलाफ आईपीसी की धारा 147 और 341 में मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने इन सभी के बयान दर्ज कर दिये हैं।
मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने बताया कि हम सभी शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध दर्ज कर रहे थे। पुलिस द्वारा लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं। हम पर आईपीसी की धारा 147 लगाई गई है। यह धारा दंगा करने वालों पर लगाई जाती है।
उन्होंने कहा कि किसी ने भी वहां पर दंगा नहीं किया। न कोई तोड़फोड़ की। किसी तरह का व्यवधान नहीं हुआ। चंद मिनटों के लिए सांकेतिक जाम लगा था। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। जो बेबुनियाद हैं। पुलिस सफेदपोशों के दबाव में काम कर रही है।
मोहित डिमरी ने कहा कि वह मूल निवासियों की सुरक्षा और उन्हें अपने ही राज्य में अधिकार मिले, इसके लिए लड़ रहे हैं। आज मूल निवासी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। उसके संसाधनों पर बाहर से आने वाले माफिया, गुंडे-बदमाश डाका डाल रहे हैं। अपने ही राज्य में मूल निवासी की कोई हैसियत नहीं रह गई है।
उन्होंने कहा कि जब तक राज्य में मूल निवास की व्यवस्था और मजबूत भू-कानून नहीं बन जाता है, तब तक आपराधिक घटनाएं होती रहेंगी। हमें अपने और अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए एक होकर लड़ना होगा।
पुलिस ने समाजसेवी दीप्ति बिष्ट, संघर्ष समिति के सचिव प्रांजल नौडियाल, संघर्ष समिति के महानगर संयोजक अनिल डोभाल, प्रमोद काला, ललित श्रीवास्तव, देवचंद उत्तराखंडी, संजीव भट्ट, संजना बडोनी, देवेंद्र सिंह नेगी, यशवीर सिंह चौधरी, राहुल कोहली, दिमेश्वर प्रसाद रणाकोटी समेत 13 लोगों और अज्ञात पर मुकदमे दर्ज किए हैं।
पुलिस ने दर्ज एफआईआर में कहा है कि 20 जून को 13 लोगों और 20- 25 अज्ञात लोगों ने 6 नंबर पुलिया के पास सब्जी मंडी बंद कराने का प्रयास किया और लोगों को उकसाते हुए सड़क जाम की। इस दौरान दूध, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और जरूरी वाहन जाम में फंस गए, जिससे आमजन को परेशानी हुई।
अब कोई पुलिस से पूछे कि प्रदर्शनकारियों के जाम के चलते अगर जरूरी सेवाएं बाधित हुई और आम जनता को परेशानी हुई तो फिर उत्तराखंड की सड़कों पर आए दिन वीआईपी और वीवीआईपी फ्लीट के चलते जो पुलिस घंटों घंटों आम जनता और दूसरे एंबुलेंस जैसे जरूरी वाहनों को रोक कर रखती है, ऐसे मामलों में अब तक कितनी एफआईआर दर्ज हुई हैं?
सवाल यही है कि आखिर क्यों सत्ता में बैठे मठाधीशों की ओर से ऐसी परिस्थितियां पैदा की जा रही हैं, जिससे पहाड़ के युवा अपना सब काम धाम छोड़कर सड़क पर प्रदर्शन करने को मजबूर हो रहे हैं।
राज्य के गिने चुने जागरूक जुनूनी लोग जब निरंकुश व्यवस्था के खिलाफ हल्लाबोल कर रहे हों, ऐसे में उनके हौंसले को तोड़ने के लिए कानून की धाराएं लगाना साफ दर्शाता है कि सत्ताधारियों की नजर में आज आम उत्तराखंडी की हैसियत है। ये साफ इशारा है कि आवाज उठाओगे तो कुचल दिए जाओगे।
लेकिन सत्ताधारी यह भूल रहे हैं कि कानून का डर दिखाकर आम उत्तराखंडी को डराया जा सकता है लेकिन जिन्होंने देवभूमि की अस्मिता और वजूद की खातिर सिर पर कफ़न बांध लिया हो उनका क्या ?
भले ही सत्ताधारियों की नजर में आज ये 13 लोग कानून के गुनहगार हों लेकिन हकीकत में वो देवभूमि के सच्चे प्रहरी हैं, जिनका कसूर बस इतना है कि वो उत्तराखंड के बिगड़ते हालातों को सुधारने की ख्वाहिश पाले हैं।